महाकवि 'निराला'

महाकवि 'निराला': सखि, वसंत आया। भरा हर्ष वन के मन। नवोत्कर्ष छाया। सखि, वसंत आया। किसलय-वसना नव-वय-लतिका। मिली मधुर प्रिय उर तरु-पतिका

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