विश्व में हिंदी का बढ़ता दबदबा

विश्व में हिंदी का बढ़ता दबदबा: स्वीकारने में हिचक नहीं कि बाजार ने भी हिंदी की स्वीकार्यता को नई उंचाई दी है। यह सार्वभौमिक सच है कि जो भाषाएं रोजगार और संवादपरक नहीं बन पाती उनका अस्तित्व खत्म हो जाता है।

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