भाषा बहता नीर

भाषा बहता नीर: कबीरदास जी कह गए कि संस्कीरति है कूप जल, भाषा बहता नीर। भाषा अगर नदी के जल की तरह हमेशा बहती रही, यानी एक तट से दूसरे तट को छूती रहे, तो उसमें रवानगी बनी रहेगी

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