अंत का आरंभ

अंत का आरंभ: गोपाल बाबू धीरे-धीरे लाठी टेककर उस घर की सीढ़ियां उतर रहे थे, निराश और उदास। वैसे यह कोई पहला घर नहीं था, जहां से उन्हें इस तरह आना पड़ रहा था और न ही ये कोई आखिरी घर है

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